मशरूम उत्पादन का हब बनेगा रोहतास, प्रशिक्षण लेने उमड़ रहे युवा

धान का कटोरा माना जाने वाला रोहतास जिला के किसान धान और गेहूं की परम्परागत खेती से विमुख होने लगे हैं. इन फसलों की उपज का वाजिब मूल्य नहीं मिलने से किसानों के चेहरे पर मायूसी साफ़ झलक रही है. अभी तैयार धान की सरकारी खरीद का इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं होने से लोग औने-पौने भाव में अपनी उपज बेच रहे है. पुश्त दर पुश्त चली आ रही धान गेहूं की खेती इनके लिए घाटे का सौदा बन गयी है. ऐसे में अब तेलहन-दलहन के अलावा पिपरमिंट और मशरूम की खेती की ओर तेजी सी कदम बढा रहे हैं. मशरूम उत्पादन के लिए बिक्रमगंज स्थित कृषि विज्ञान केंद्र युवाओं का मार्गदर्शक बना हुआ है. इसे ले लगातार प्रशिक्षण का दौर शुरू है. कुछ दिनों से बाहर से आये कृषि वैज्ञानिक इन्हें मशरूम के बीज उत्पादन का गुर सिखा रहे हैं. बिक्रमगंज केंद्र में चले प्रशिक्षण में बड़ी तादात में किसान परिवार से जुडी महिलायें भी शामिल हो रही है. अभी तक इस जिले में छिटपुट तौर पर हो रहे मशरूम उत्पादन मुनाफे के मामले में हर खेती को पीछे छोड़ दिया है.

मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लेने उमड़े युवा:
अक्सर शांत रहने वाली गतिविधियों के बीच बिक्रमगंज स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में युवक-युवतियों की बढ़ी आवाजाही देख कर आसपास के चाय दूकानदार हैरत जता रहे है. उन्होंने बताया कि यहां के नवजवान किसानी सीखने आ रहे हैं. बाहर से आये कृषि वैज्ञानिक डॉ. अरविन्द कुमार व केंद्र की डॉ. रीता सिंह दर्जनों की तादात में शामिल युवाओं को मशरूम बीज के उत्पादन का प्रशिक्षण दे रहे हैं. वही कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. रीता सिंह कहती हैं कि इस जिले में व्यावसायिक खेती की काफी वाइबिलिटी है. ख़ास कर युवाओं में नए ढंग से खेती की जिज्ञासा देखी जा रही है. फिलवक्त मशरूम उत्पादन का दौर चल रहा है. बिक्रमगंज, नोखा, संझौली, नटवार और

दिनारा प्रखंड के कई गांवों में उत्पादन हो रहा है. दिनारा के सरना मठकी में बड़े पैमाने पर उत्पादन की योजना है. उन्होंने विश्वास जताया कि इस जिले में मशरूम उत्पादन हब का रूप ले सकता है.

मशरूम के बीज

मशरूम उत्पादन से मालामाल हो रहे किसान पुत्र: 

दिनारा प्रखंड के तहत भानपुर पंचायत का रहीं गांव के छात्र अरविन्द कुमार सिंह को कल तक कोई पहचानता भी नहीं था. कॉलेज में शिक्षारत अरविन्द अपने पूर्वजों की हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद कृषि से शरीर पर ठीक से कपड़े नहीं होने का बचपन से ही मलाल पाल रखा था. दो वर्ष पूर्व उसने कृषि अनुसन्धान केंद्र के मार्गदर्शन में अपने यहां मशरूम उत्पादन शुरू किया. तैयार कच्चा माल आसानी से 120 रु प्रति किलो बिक जाता है. प्रोसेस के तहत ड्राई बनाने पर उसकी कीमत 800/- की हो जाती है. अरविन्द की माने तो आज वह बोरियों में भर कर अपना उत्पाद बाहर भेजते है. उसके लिए नियत बाजार भी उपलब्ध है.

रिपोर्ट- राजेश कुमार

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